लोकतंत्र का युग Age of Democracy

लोकतंत्र का युग Age of Democracy


स्ांयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2007 में लोकतंत्र की अहमियत को बताते हुये, लोकतंत्र दिवस मनाने का फैसला किया। इस मौके पर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने प्रस्ताव में कहा देशों के लोकतंत्र के लक्षण एक समान इसका कोई एक आदर्श रुप नही है। प्रस्ताव मेंकहा गया लोकतंत्र एक वैश्विक मुल्य है जो लोगों की स्वतंत्र रुप से व्यक्त की गई राजनीतिक आर्थिक सामाजिक और सास्कृतिक व्यवस्थाओं को निर्धारित करने और जीवन के सभी पहलुओं में उनकी पूर्ण भागीदारी पर आधारित है सयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव 8 नवंबर 2007
ळालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ ने माना की लोकतंत्र किसी खास देश अथवा क्षेत्र से जुड़ा नही है और न इसका कोई एक मॉडल है, जिसे लागू किया जा सकें 
इतिहास
दरअसल अलग-अलग देशों की संसदों के सगठन अंतर ससदीय संघ ने सितंबर 1997 में लोकतंत्र को वैश्विक आधार देने के लिए प्रस्ताव तैयार किया इसके बाद 1998 में फिलिपिंस में अंतर संसदीय संघ का आयोजन किया गया  इसमें लोकतंत्र में सगठन, सरकारों संसदों, नागरिकों, समाजों की भागीदारी बढ़ाने पर बात हुई।
2006 में दोहा में आयोजित आईसीएनआरडी का छठा सम्मेलन आयोजित किया गया। इस संमेलन में अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवश मनाने का प्रस्ताव रखा गया। कतर में इसका मसौदा तैयार कर संयुक्त राष्ट्र  के सदस्यों देशों के सथ विचार विमर्श किये जाने के लिए प्रस्ताव को रखा गया। 
8 नवंबर 2007 को ये प्रस्ताव सर्वसम्मति से अपना लिया गया; तय हुआ कि हर साल अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाया जायेगा। इसका 15 सितंबर 2008 को ये दिवस दुनिया भर में धुमधाम से मनाया गया।
संयुक्त राष्ट्र संघ की भावना के अनुरुप यानी अंतर संसदीय संघ ने दुनिया भर कि संसदों से आग्रह किया कि इस दिन विशेष आयोजन किये जाये आईपीयु ने कहा कि संसद लोकतंत्र का केन्द्र बिन्दु है, इसलिए लोकतंत्र को बचाने व बढ़ावा देने की जिम्मेदारी भी संसद कि है।
मकसद 
अंतराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाने का मकसद लोकतांत्रिक सिद्धांतों को प्रोत्साहित करना लोकतंत्र की रक्षा है। संयुक्त राष्ट ्रके प्रस्ताव के मुताबिक सभ्ज्ञी सदस्यों देशों की जिम्मेदारी है कि वहां अपनपे लोकतांत्रिक मूल्यों को बढावा  देने वाली संस्था को मजबुत करने की बात कही गई। 
आईये अब एक नजर डालते है लोकतंत्र के इतिहास और उसके सफर पर।
422 ई.पूं ग्रीक दार्शनिक लियोन ने लोकतंत्र को प्रजातंत्र के रुप में परिभाषित किया था और कहा था कि प्रजातांत्रिक वह होगा जों जनता का होगा, जनता के द्वारा हो और जनता के लिए हो युनान के नगर राज्यों में लोकतंत्र का रुप था डनहे पूरी स्वतंत्रता प्राप्त थी अरस्तू ने इन्ही राज्यों में लोकतंत्र की खुली वकालत कि है इनमें पुरी प्रजा आम सभाओं में लोग जमा होकर कानून पास किया करती है थी यूनान में इस तरह की व्यवस्था खतम होने के बाद इली में शुरु हुई थी।
आधुनिक युग में लोकतांत्रिक सस्थाओं की शुरुआत इगलैण्ड में हुई इसके बाद ही अमेरिका, फ्रांस, स्वीटरजरलैंड में लोकतांत्रिक सस्थाओं की नीव डाली गई सभी देशों को परम्परागत लोकतंत्र का गण माना गया। लेकिन चीन सहित कई साम्यवादी देश इन देशो की शासन व्यवस्था को बुर्जुवा लोकतंत्र का नाम देकर उसका मजाक उड़ाते है।
आधुनिक लोकतंत्र का विकास
आधुनिक लोकतंत्र की शुरुआत 12वीं और 13वीं सदी के राजतंत्र विराधी  आंदोलन के साथ हुई। युरोप में पुर्नजागरण और धर्मसुधार आदोलनों का लोकतंत्रात्मक सिद्धांतों के विकास में अहम योगदान रहा 1688 की इगलैंड की रक्तहिन क्रांति, फ्रांसीसी क्रांति ने स्वतंत्रता समानता और भाईचारे के सिद्धांत को मजबूत किया। जॉन लॉक, थॉमस हॉब्स, जॉन स्टुअर्ट मिल, एडम स्मिथ, जेरेमी बेथम और जीन जैक्स, रुसों जैसे विचाराकों ने लोकतांत्रिक विचारों और सिद्धांतों को नये आयाम दिये। 
यदि हम आधुनिक युग में लोकतंत्र की बात करे तो विश्व में दो तरह के लोकतंत्र चलन में है। एक जिसका रुप भारत इगलैड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में है। जिसे संसदीय प्रणाली  कहा जाता है  दुसरा अमेरिका जहॉ राष्ट्रपति शासन प्रणाली या राज्यपाल होते है जो शासन के संर्वोच्च होते है जिनमें शासन की सर्वोच्च सŸा निहित होती है।
ये बात और है कि अमेरिका राष्ट्रपति को वोट के अधिकार होते है। जबकि संसदीय शासन प्रणाली वाले देशों में राष्ट्रपति या राज्यपाल केवल नाम के ही प्रधान होते है। क्योकि वे चुने हुए मंत्रीमंडल की सलाह पर ही कार्य करने को बाध्य होते है। इन सबके अलावा संयुक्त राष्ट्र का भी मानना है की मानवाअधिकारो के बगैर लोकतंत्र की कल्पना अधुरी है यही वजह है कि 10 दिसंबर 1948 को जब मानवाअधिकारों का अंतर्राष्ट्रीय घोषणा पत्र जारी किया गया तो इसे बेहद महत्वपूर्ण दस्तावेज की तरह दुनिया भर में देखा गया।
अंतराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस पर भी मानवा अधिकारो को मजबूत पहलू माना गया है आज संयुक्त राष्ट्र में अंतराष्ट्रीय मानवाअधिकार के नाम पर अलग ईकाई दुनिया के देशों में मानवाअधिकारों के सरक्षण और लोकतंत्र की मजबुती के लिए काम कर रही है।
आईये अब जानते है भारत में लोकतंत्र का इतिहास और इसकी कहानी क्या है। 
भारत में लोकतंत्र का विचार हजारों साल पुराना है। पश्चिमी विचारधारा  से प्रभावित राजनीति शास्त्र के विद्वानों की यह मान्यता सही नही है कि लोकतंत्र का सबसे पहले उदय यूनान के राज्य में हुआ भारत में वैदिक सभ्यता के शुरुआत में ही ऋग्वेद की रचना के समय यानी लगभग 5000 हजार साल पहले लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूत नीव पड़ चुकी थी। लोकतांत्रिक इकाईयों में राजा भी आता था, जिसे राजा बनने के समय जनता के क्ल्याण की शपथ भी लेनी पड़ती थी। और उसके इस कार्य में मदद करने के लिए सभा, समिति होती थी। समिति राज्यों के मामलों पर अपना विचार जाहिर करती थी और राजा के निर्वाचन में भाग भी लेती थी।
मौर्य, गुप्त और हर्ष काल में ग्रामसभाओं का विकास हुआ जो ग्रामीण व्यवस्था की देखरेख के साथ ही न्याय, प्रशासन का भी कार्य किया करते थे। इन्ही पंचायतों और ग्राम सभाओं का विकास गणराज्य के रुप में हुआ प्राचीनकाल में शाम्य, मल्ल, लिच्छी, विदेह में गणराज्य का विस्तार था।
गणराज्य एक तरह से पहले से स्थापित जनपदों का ही रुप था। भारत में करीब 700 जनपद थे। 16 ऐसी इकाईयां थी जिन्हे महाजनपद कहा जाता था। आज कि संसदों की तरह ही महाजनपदों का निर्माण किया गया था जो वर्तमान संसदीय प्रणाली से काफी मिलती जुलती थी इन्ही जनपदो  ने आगे चलकर गणतंत्र का रुप लिया जो न केवल जागरुक संगठित थे बल्कि लोकतंत्र के नियम कायदों के प्रति आज के लोकतंत्र से कुछ भी कम आस्था नही रखते थे।
फिर वो दौर आया जब देश सैकड़ों सालो की गुलामी से आजाद हुआ, आजाद भारत के समाने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा था शासन चलने का अनुभव नही होना बड़ा भू-भाग प्रांतों की इतनी विविधता थी कि जो पल भर में आजादी के सारे सपनों को रौध सकती थी। लेकिन भारत सभी अवधाराणाओं से तरक्की की राह पर चला वो अवधारणा की लोकतंत्र की और यही कारण था की आजाद भारत का संविधान बनाये जाने लगा उस समय संविधान सभा के सभी सदस्यों का मत ये था कि भारत एक लोकतांत्रिक देश हो और जब देश का संविधान बना तो देश की इस दिशा को संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया भारत एक संपूर्ण संपन्न  समाजवादी धर्मनिरपेक्ष देश होगा।
लोकतांत्रिक पद्धति को अपनाते हुए जनता द्वारा प्रत्यक्ष रुप से निर्वाचित संसद को देश का सबसे मजबूत और सर्वशक्तिशाली संदन घोषित किया गया। इसके साथ ही दुनिया की अन्य शासन पद्धतियों के समान ही कार्यपालिका को व्यवस्थापिका के प्रति उŸारदायी बनाया गया।
भारत में जो लोकतांत्रिक शासन पद्धति अपनाई उसमें इस बात का ध्यान रखा गया कि कही शासन निरकुंश और अत्याचारी न हो जाये इसके लिए सभी नागरिकों को महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार दिये है इसके साथ ही यह व्यवस्था कि गई कि यदि इन अधिकारों को छिनने कि कोशश करे तो नागरिक सीधे न्यायालय  जा सके इसके लिए शासन के तिसरे महत्वपूर्ण अंग के रुप में निष्पक्ष न्यायपालिका की व्यवस्था की गई। 
इसके अलावा भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुचारु रुप से चलाने के लिए भारत में एक निष्पक्ष निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है। साथ हा पांच सल बाद लोकसभा और विधानसभा के चुनाव की व्यवस्था की गई 
लोकतंत्र कि खुबियां और कमियां
लोकतंत्र शब्द संस्कृत के लोक यानी जनता और तंत्र यानी शासन से मिलकर बना है। इसी तरह अग्रेजी शब्द डेमोक्रेसी ग्रीक शब्द डेमोक्रेटिका से आया है जिसका अर्थ है लोगों का शासन।
लोकतंत्र एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें जनता अपना शासन खुद चुनती है। लोकतंत्र को मोटे तौर पर तीन किस्म का बताया जाता है। 
प्रतिनिधि लोकतंत्र जहां जनता सरकारी प्रतिनिधि को सीधे चुनती है इसमें प्रतिनिधि किसी जिले या संसदीय क्षेत्र से चुने जाते है। और सभी मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते है इसमें नियमित अंतराल पर दुबारा चुनाव कि व्यवस्था होती है।
लोकतंत्र का उन्नत स्वरुप उदार लोकतंत्र भी है। इसमें स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव के अलावा लोकतंत्र के मुल तत्वों पर भी जोर दिया जाता है। इनमें अल्पसंख्यों की सुरक्षा, कानून व्यवस्था, शक्तियों का बटवारा, अभिव्यक्ति की आजादी के अलावा भाषा, धर्म संपिŸा की आजादी का प्रावधान किया जाता है। 
प्रत्यक्ष लोकतंत्र को लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक और उन्नत स्वरुप माना जाता है। इसमें तमाम महत्वपूर्ण नीतिगत फैसले जनमत के जरिये करते है इसमें सैद्धांतिक तौर पर सभी फैसले जनता करती है और इसमें कोई प्रतिनिधि या मध्यस्थ नही होता है हालांकि इस तरह की व्यवस्था छोटे नगरों, राष्ट्रों में व्यवहारिक है।
सैद्धांतिक तौर पर लोकतंत्र में पुरातन उदारवादी, अभिजनवादी, बहुलवादी, प्रतिभागी और मार्क्सवादी सिद्धांत प्रचलित है।
पश्चिमी देशों में लोकतंत्र को राजनीतिक सघर्ष का समाधान माना जाता है हालांकि लोकतंत्र के मॉडल, सिद्धांत, मुल तत्व लागू करने पर दुनिया कभी एकमत नही हो पाई है।
लेकिन ये सभी मानते है कि दुनिया की तमाम शासन प्रणालियों में लोकतंत्र सबसे बेहतर शासन प्रणाली है। नागरिक समाज कि निर्माण करने की आकाक्षां मनुष्य को लोकतंत्र की तरफ बढ़ने की और प्रेरित करती रही है। संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में पुरी दुनिया लोकतांत्रिक मुल्यों को महत्व देती है।
लोकतंत्र की खुबियों को भारत के संदर्भ में देखा जाये तो भारत के पास लिखित और श्रेष्ठ संविधान  है भारतीय लोकतंत्र का सबसे मजबमूत आधार है हमारे यहां प्रतिनिधियों के अलावा आम जनता की भी लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता है प्रेस और नागरिक स्वतंत्रता हमारे लोकतंत्र को और ज्यादा खुबसुरत बनाती है। हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में सŸा का विकेन्द्रीकरण है तो लोगों के पास वोट की ताकत है; जनता के शासन के लिए संसद की सर्वोच्चता है तो परस्पर विचार विमर्श से चलने वाली असख्य खुबियां लोकतंत्र को सशक्त बनाती है। 
लोकतंत्र की कमियां
लोकतंत्र कि कई खामियां है जिसकों दुनियां भारत सहित दुनिया के कई देश इन्हे दुर करने की पुरी कोशिश कर रहे है। इसमें प्रासगिक खामियों की बात करे तो जोड़ तोड़ की राजनीति, भ्रष्टाचार राजनीतिक अपराधिकरण, राजनीतिक अस्थिरता संसदीय वाद-विवाद में लगातार होता हास, शिक्षित लोगो में कम होता राजनीतिक रुझान, मानवाअधिकारों की पूर्ण रक्षा करने में नाकामियां, न्याय और अधिकारों की पूर्ण पहुंच बड़ी चुनौतियां है जिससे दुनियां के कई लोकतंत्र झुझ रहे है। 
इस तरह लोकतंत्र की मुल अवधारणा में बसे समावेशी विकास, शिक्षा, स्वतंत्रता और मानवाअधिकार जैसे तत्व समग्र रुप से लागू करने के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का लगातार अवलोकन करते रहना भी जरुरी है।

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