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Showing posts from May, 2020

अपक्षय क्या है? अपक्षय के प्रकार, अपक्षय को प्रभावित करने वाले कारक

अपक्षय (weathering) क्या है? अपक्षय के प्रकार, अपक्षय को प्रभावित करने वाले कारक चट्टानों का अपने स्थान पर भौतिक रासायनिक एवं जैविक कारकों से विखंडन एवं वियोजन की क्रिया को अपक्षय कहते है। अपक्षय को प्रभावित करने वाले कारक- (1) संरचना- चट्टान विभिन्न खनिजों का समुच्चय होती है अतः इन खनिजों की कठोरता दृढ़ता एवं भगुरता भिन्न-भिन्न होती है। मुलायम चट्टानों का अपक्षय आसानी से होता है। मोहो ने कठोरता के आधार पर खनिजों को 10 भागों में विभाजित किया है।  हिरा सबसे कठोर  कोंरडम  टोपोज  क्वार्टज 2 जलवायु- अपक्षय को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले कारकों में से एक है। (A) उष्ण कटिबंधिय आर्द्र जलवायु- यहाँ तापमान एवं आर्द्रता की अधिकता के कारण रासायनिक अपक्षय अधिक होता है। (B) शुष्क जलवायु- यहाँ पर आर्द्रता की न्युनता एवं तापमान की अधिकता के कारण चट्टानों में फैलाव एवं सिकुड़न की क्रिया होती है जिससे यहाँ मुख्यतः भौतिक अपक्षय अधिक होता है। (C) शीतोष्ण जलवायु- यहाँ पर रासायनिक अपक्षय अधिक होता है। (D) शीत/टुंड्रा जलवायु- यहाँ पर भौतिक अपक्षय अधिक होता है। ध्रुवीय क्षेत्रों में

भारतीय मानसून की उत्पत्ति

भारतीय मानसून की उत्पत्ति मानसून एक द्वितीयक संचरण है जो उत्तर दक्षिण व्यापारिक पवनों के उष्मा गतिकिय परिवर्तन के कारण ग्रीष्मकाल में दक्षिण पश्चिम दिशा से शीतकाल में उत्तर पूर्व दिशा से संचारित होता है। इसका संबंध सूर्य के उत्तरायण एवं दक्षिणायन से है। इस दौरान दक्षिण पूर्वी व्यापारिक पवनों में 120 डिग्री तक विक्षोप उत्पन्न होता है। तथा I T C Z का 25 डिग्री उत्तरी अक्षांश तक विथापन होता है। दक्षिण पश्चिम मानसून की उत्पत्ति - सूर्य के उत्तरायण होने से तिब्बत के पठार पर हेठ जोन का निर्माण होता है। तथा वायु गर्म होकर 6 से 8 किमी. की ऊँचाई तक उढ़ती है। तथा प्रतिचक्रवातीय बाह्यय प्रवाह के रुप में उत्पन्न होता है। जिसकी एक शाखा पूर्वी जेट के रुप में कोरियोलिस बल के प्रभाव से विध्यन पर्वत श्रृखला के समान्तर स्थापित होता है। जो आगे उत्तरी सयाद्री से होकर सोमालिया तट के निकठ अवतलित होत है। तथा उच्च दाब का निर्माण होता है सूर्य के उत्तरायण से I T C Z  भी 25 डिग्री पर स्थापित होता है। ये आईटीसीजेट निम्न दाब का क्षेत्र है जो व्यापारिक पवनों को अभिसारित करता है जिससे दक्षिणी पश्चिमी मानसून भा

तटीय मैदान Coastal Plains

तटीय मैदान Coastal Plains भारत के प्रायद्वीपीय पठारी भाग के पूर्व व पश्चिम में दो सकंरे  तटीय मैदान मिलते है जिन्हे क्रमशः पूर्वी तट एवं पश्चिमी तटीय मैदान कहा जाता है। इनका मिर्माण सागरीय तरंगों द्वारा अपरदन निक्षेप एवं पठारी नदियों द्वारा लाये गये अवसादों के जमावों से हुआ है। 1. पश्चिमी तटीय मैदान- पश्चिम घाट के पश्चिमी में कच्छ की खाड़ी से लेकर कुमारी अंतरीप तक पश्चिमी तटीय मैदान फैला है। इस मैदान की औसत चौड़ाई 64 किमी. है। गुजरात के ओखा से लेकर सूरत तक का मैदान गुजरात का मैदान कहलाता है। गोवा से कर्नाटक के मगंलौर तक का क्षेत्र कन्नड़ तक कहलाता है। मंगलौर से कन्याकुमारी तक का तटीय मैदान मालाबार तट कहलाता है। मालाबार तट पर लैगुल झीले पाई जाती है। केरल में लैगुन झीलों को कयाल कहा जाता है। मालाबार तटीय मैदान में नारियल व रबड़ के पेड़ पाये जाते है। मालाबार तट अधिक कटा-फटा होने के कारण अनेक बदंरगाह पाये जाते है। 2. पूर्वी तटीय मैदान- उत्तर में गंगा के डेल्टाई मैदान से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक 100 किमी. के क्षेत्र में 100-130 किमी. चौड़ाई के साथ विस्तृत है। इस तटीय मैदान के

भारतीय मरुस्थल Indian desert

भारतीय मरुस्थल Indian desert भारतीय मरुस्थल का विस्तार अरावली की पहाड़ियों के उत्तर-पश्चिमी भाग में है। अति शुष्क दशाओं के प्रभाव के कारण भारतीय मरुस्थल में मिलने वाली स्थालाकृतियाँ भौतिक अपक्षय व पवन अपरदन द्वारा निर्मित होती है। रेतीली टील, छत्रक व मरु उद्यान यहाँ की प्रमुख स्थालाकृतियाँ है। भारत में इसे थार का मरुस्थल व पाकिस्तान में इसे चोलीस्थान का मरुस्थल कहा जाता है। इस मरुस्थल को टेथिस सागर का अवशेष माना जाता है। इसमें मरुदभेद जीरोफाइट की वनस्पति पाई जाती है। इस प्रदेश की प्रमुख नहर इंदिरा  गॉधी नहर है तथा प्रमुख नदी लूनी नदी है। अरावली का वृष्टिछाया प्रदेश होने के कारण दक्षिण-पश्चिम मानसून यहाँ वर्षा नही करता है। पवन वायु के अपरदन से निर्मित बड़े-बडे़ गर्तो में जल भर जाता है तथा जल भर जाने के बाद वहाँ की भूमि से प्राप्त लवणता के कारण इनका जल खारा हो जाता है। इन्हे प्लाया कहते है इस प्रकार की स्थालाकृतियाँ इस प्रदेश में पाई जाती है।

प्रायद्वीपीय पठार Peninsular Plateau

                                        प्रायद्वीपीय पठार Peninsular Plateau भारत के भौतिक प्रदेश- भू-वैज्ञानिक संरचना व शैल समुह की विभिन्नता के आधार पर भारत को तीन भू-वैज्ञानिक खंडों में विभाजित किया जाता है जो भौतिक लक्षणों पर आधारित है। प्रायद्वीपीय खंड हिमालय और अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वतमालाएँ सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान                       प्रायद्वीपीय पठार उच्चावचीय एवं संरचना के आधार पर भारत को निम्नलिखित  भू-आकृतिक खंडों  में बाटा गया है। उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वमाला उत्तरी भारत का मैदान;  The Northern Plain प्रायद्वीपीय पठार; भारतीय मरुस्थल तटीय मैदान द्वीप समूह प्रायद्वीपीय पठार भारत का प्राचीनतम भूखंड है। तथा ये  प्राचीन गोडवाना भूमि का भाग है जो कठोर आगनेय चट्टानों से निर्मित तिकाने आकार वाला कटा-फटा त्रिभुजाकार भूखंड है। अरावाली राजमहल मेघालय की पहाड़िया इस पठार की उत्तरी सीमा बनाती है। कार्बी ऐगलोग मेघालय के पठार के पास इसका विस्तार है। मेघालय का पठार प्रायद्वीपीय पठार का ही भाग है जो बाग्लादेश में स्थित गंगा ब्रह्मपुत्र के मैदान के

उत्तर का विशाल मैदान; उत्पत्ति एवं प्रादेशिक वर्गीकरण

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         उत्तर का विशाल मैदान; उत्पत्ति एवं प्रादेशिक वर्गीकरण                                                        भारत के भौतिक प्रदेश भू-वैज्ञानिक संरचना व शैल समुह की विभिन्नता के आधार पर भारत को तीन भू-वैज्ञानिक खंडों में विभाजित किया जाता है जो भौतिक लक्षणों पर आधारित है। प्रायद्वीपीय खंड हिमालय और अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वतमालाएँ सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान                                                                 उत्तर का विशाल मैदान उच्चावचीय एवं संरचना के आधार पर भारत को निम्नलिखित  भू-आकृतिक खंडों  में बाटा गया है। उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वमाला उत्तरी भारत का मैदान;  The Northern Plain प्रायद्वीपीय पठार; भारतीय मरुस्थल तटीय मैदान द्वीप समूह उत्तरी भारत का मैदान  इसे सिंधु-गंगा ब्रह्मपुत्र का मैदान भी कहा  जाता है। इसका विस्तार 7.50 लाख वर्ग किमी. में पाया जाता है इसकी लम्बाई 2400 किमी. पश्चिम की औश्र चौड़ाई 500 मीटर पूर्व की और चौड़ाई 100 किमी इसकी गहराई 2000 मीटर है। उत्तरी भारत का मैदान ये मैदान जलोढ़ अवसादों से निर्मित है तथ

एल-निनो El Nino

एल-निनो (El Nino) एल-निनों (El Nino) मध्य प्रशांत महासागर की गर्म जलधाराएं दक्षिणी अमेरिका के तट की और प्रवाहित होती है और पीरु की ठंडी धाराओं का स्थान ले लेती है पीरु के तट पर इन गर्म धाराओं की उपस्थिति एल-निनों कहलाता है। एल-निनों का शाब्दिक अर्थ बालक ईसा  है, क्योकि यह धारा दिसंबर के महीने में क्रिसमस के आस-पास नजर आती है। पेरु दक्षिणी गोलार्द्ध में दिसंबर गर्मी का महीना होता है। एल-निनों को विपरीत धारा (counter current)    के नाम से जाना जाता है; वर्तमान में एल-निनों को एक मौसमी घटना या परिघटना (weather event or phenomenon) के रुप में लिया जाता है। इसका संबंध उष्ण कटिंबंधी पूर्वी प्रशांत महासागरीय जल तापमान में वृद्धि से है एल-निनों वैश्विक जलवायु में विनाशक विसगतिया उत्पन्न करता है जिसके कारण पेरु तट पर सामान्य से बहुत अधिक वर्षा होती है। ला-निनो (La Nina) इसका अर्थ है ठंडी बहन ये एल-निनों का विपरीतात्मक शब्द है जब पेरु तट के निकट जल का तापमान 2-4 डिग्री शीतलित हो जाता है। सामान्य वर्ष में पेरु के तट पर अपतटिय दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनों के प्रभाव से शीत जल का उदवेलन

उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वमाला The Northern and North-eastern Mountains

  उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वमाला  The Northern and North-eastern Mountains  प्रशन-  भारत को भू-आकृतिक प्रदेशों में विभक्त करते हुए हिमालय प्रदेश का विस्तृत विवरण दीजिए।                                                      भारत के भौतिक प्रदेश भू-वैज्ञानिक संरचना व शैल समुह की विभिन्नता के आधार पर भारत को तीन भू-वैज्ञानिक खंडों में विभाजित किया जाता है जो भौतिक लक्षणों पर आधारित है। प्रायद्वीपीय खंड हिमालय और अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वतमालाएँ सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान उच्चावचीय एवं संरचना के आधार पर भारत को निम्नलिखित भू-आकृतिक खंडों में बाटा गया है। उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वमाला उत्तरी भारत का मैदान; प्रायद्वीपीय पठार; भारतीय मरुस्थल तटीय मैदान द्वीप समूह उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला- उत्तरी पर्वतीय प्रदेश को मगजतं चमदपदेंसं ;बाहृय प्रायद्वीपद्ध कहते है। उत्तर पर्वतीय प्रदेश का विस्तार 5 लाख वर्ग किमी. है। प्रारम्भ में प्रायद्वीपीय भारत मेडागास्कर द्वीप के पास स्थित था जोक प्लेट विवर्तन के कारण धीरे-धीरे उत्तरी-पूर्वी दिशा की और गति करने लग

Atal Bhujal Yojana अटल भूजल योजना

 Atal Bhujal Yojana अटल भूजल योजना भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की 94वीं जन्म जयतीं पर 25 दिसंबर 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अटल भूजल योजना का शुभारंभ किया। इस योजना के द्वारा जल संरक्षण को बढ़ावा देते हुये भूमिगत जल कां उपर लाना तथा ग्रामीण क्षेत्रों की जन भागीदारी को इसमें शामिल करना है। वित्तिय प्रबंधन - इस योजना पर खर्च होने वाला कुल 6000 करोड़ रुपये है, जो अगले पाँच सालों के दौरान 2020 से 2025 तक लागू कि जायेगी। इस 6000 करोड़ कि कुल धनराशी का 50 प्रतिशत हिस्सा विश्व बैक ऋण के रुप में देगी जिसका भुगतान भी केंद्र सरकार ही करेगी। इस योजना का राज्यों पर किसी भी प्रकार बोझ नही बढे़गा क्योकि केंद्र सरकार ही राज्यों को अनुदान राशी देगी। यह उन योजना भारत के उन राज्यों में लागू कि जायेगी जहाँ भूमिगत जल काफी नीचे चला गया है। इसमें सात राज्यों को शामिल किया गया है वै है राजस्थान, कर्नाटक हरियाणा महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश, हरियाणा शामिल है। यह योजना 78 जिलों के 8350 ग्राम पंचायत में लाभ पहुँचाया जायेगा। इस योजना के मुलभूत उ६ेश्य- समुद